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तू हम से जो हम-शराब होगा / मीर 'सोज़'

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तू हम से जो हम-शराब होगा
बहुतों का जिगर कबाब होगा

ढूँढेगा सहाब छुपने को मेहर
जिस रोज़ वो बेनक़ाब होगा

ख़ूबाँ से न कर मोहब्बत ऐ दिल
आमान कहाँ ख़राब होगा

ऐ मर्ग़-ए-शिताब कह तू मुझ से
उस ज़ीस्त को कब जवाब होगा

बोसा दे ‘सोज’ को मेरी जान
मतलब मेरा शिताब होगा