भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तू ही तेरी ताकत है / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खुद से आज बगावत है.
क्यों बदली हर आदत है.

तू जैसा था वैसा रह,
बाकी तेरी किस्मत है.

मन से सहमत हो न सका,
फिर तन से क्यों सहमत है.

तिल-तिल कर मरता है क्यों,
जब जीने की चाहत है.

दिल की खुशियों से बढ़कर,
क्या कोई भी दौलत है.

खुद को मत कमजोर समझ,
तू ही तेरी ताकत है.