भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तू है बादल / लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
Kavita Kosh से
तू है बादल
तो, बरसा जल।
महल के नीचे
मीलों दलदल।
एक शून्य को
कितनी हलचल।
नाम ही माँ का
है गंगा जल।
छाँव है ठंडी
तेरा आँचल।
नन्ही बिटिया
नदिया कलकल।
तेरी यादें
महकें हर पल।
और पुकारो
खुलेगी सांकल।