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तृष्णा जाती हार / प्रेमलता त्रिपाठी

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तृष्णा जाती हार।
मानस चुनता सार।

मन को करे मलीन,
लोभ करे व्यापार।

तन मन भरे उजास,
तुष्टि बने आधार।

पर्वों की सौगात,
सावन भादों क्वार।

प्यारा भारत देश,
जग मग है संसार।

सुख दुख भूले प्रेम,
मन में रखे न क्षार।