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तृष्णा / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'

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सोन परी लै बरमाला
स्वयंम्बर में रूप निज दिखावै छै
केकरा गल्लोॅ डालतै माला
सबकेॅ जी ललचावै छै।

कोय लगावै चंदन टीका
एँक दोसरा केॅ करने फीका
कोॅय घोड़ा कोइये हाथी केॅ
वाहन खूब सजावै छै।

लूटै कोय वहाँ स्वयंम्बर
कोइये लै भागै छै अम्बर
धरम-इमां, सब तोड़ी-ताड़ी
रंङ रंग रंगावै छै।

सोन परी ई केकरोॅ होतै
ई दिल आखिर केकरा देतै
द्वन्द्व-युद्ध केॅ नौता दै-दै
आपने लाल लड़ावै छै।

हरि ल जाय छे जेकरा ताकत
ई कनियैनै बुलावै आफत
बहुरूपिया केॅ भेष धरी केॅ
रंग-रंग रुप दिखावै छै।

चाहे जे इतिहास बनावोँ
सोन परी शीशा में मँढावोॅ
चाल समझ में नै आव छै
रंग-रंग भेद उगावै छै।

सुरसा रंग रूप तृष्णा केॅ
कभियो श्रद्धा कभू घृणा केॅ
ई माया के कनिया सें
‘मथुरा’ के कवि पछतावै छै