भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेग़ चढ़ उस की सान पर आई / अहसनुल्लाह ख़ान 'बयाँ'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेग़ चढ़ उस की सान पर आई
देखें किस किस की जान पर आई

हम भी हाज़िर हैं खींचिए शमशीर
तबा गर इम्तिहान पर आई

टुक शिकायत की अब इजाज़त हो
नहीं रुकती ज़बान पर आई

पूछिए हाल-ए-ज़ार ये न कभू
दिल-ए-ना-मेहर-बान पर आई

दिल हमारा कि घर ये तेरा था
क्यूँ शिकस्त इस मकान पर आई

कट गई दूदमान-ए-ताक की नाक
दुख़्त-ए-रज़ जब दुकान पर आई

टुक तो ज़ालिम सँभाल ख़ंजर-ए-कीं
कारद अब उस्तुख़्वान पर आई

आलम-ए-जाँ से तू नहीं आया
एक आफ़त जहान पर आई

ग़ैर के आगे दिल की बात ‘बयाँ’
आह मेरी ज़बान पर आई