भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेज़ाब से झुलसा चेहरा-2 / अनिल गंगल
Kavita Kosh से
ऐसा कौन सा अक्षम्य अपराध था
जिसके दण्डस्वरूप लिखा था उसके भाग्य में
यह नरकवास?
क्या जुर्रत की उसने प्रेम करने की
इस क्रूर और हिंसक दुनिया में रहते हुए?
क्या किसी को अपना सर्वस्व सौंपते हुए
कुछ माँगा नहीं उसने प्रतिदान में?
क्या बिताए उसने किसी विधर्मी के संग
ज़िन्दगी के कुछ आनन्दमय पल?
दुनिया की सुन्दरता को हथेलियों में समोने के लिए
दौड़ी क्या वह हाथ फैला कर दसों दिशाओं में?
ऊँचाइयों से गिरते झरनों ने
क्या छीन लिया उससे उसका अन्त:संसार?
आँचल फैला कर दुनिया के इन्द्रधनुषीय फूलों को
चुनने का उसने क्या दुस्साहस किया?
ज़ाहिर है
कि अक्षम्य ही रहा होगा उसका यह गुनाह
भाँति-भाँति के खापों की उपस्थिति से बजबजाती
इस दी हुई दुनिया में।