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तेज़ ज़माना तेरी मंद चाल या क्यूकर पार बसावै / हबीब भारती

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तेज़ ज़माना तेरी मंद चाल या क्यूकर पार बसावै।
जै तूं चाह्वै कदम मिलाणा ना पढ़णै तैं सरमावै।।
 
शिक्षा बिन खुद मर्द निहत्था समझे ने विचार नहींं,
अनपढ़ औरत ब्याही आज्या मिटता यों अंधकार नहीं,
रह्णा-सह्णा रै तू धरै कोन्या, हो कुणबे का उद्धार नहीं,
टोणे-टोटके ले ज्यान पूत की वैद्यां पर एतबार नहीं,
बीमार भैंस दे धार नहीं, ना बुउझा पशु पुसावै
 
अनपढ़ बाळक रहज्यां सारे, ना तोल पटै हरजाने का,
वेद-शास्त्र के कहग्ये, के सै इतिहास ज़माने का,
अक्षर-ज्ञान की कुंजी बिन रहै फाटक बंद खजाने का,
बेद-शास्त्र के कहग्ये, के सै इतिहास ज़माने का,
अक्षर-ज्ञान की कुंजी बिन रहै फाटक बंद खजाने का,
विद्या अनमोल रत्न रैहज्या, ना भेद मिले तहखाने का,
खुद हाल जाण परवाने का, क्यूं सुण काम चलावै
 
कित-कित धोखा हो रह्या सै यो जाणे बिना गुजरा ना,
मंदर-मसजद के रोला सै, बचरह्या क्यूं गुरूद्वारा ना,
टेशन, अड्डे, दफ्तर मैं भी पढ़े बिना कोए चारा ना,
अपणे दम पै चाल खड्या हो, ढूंढे और सहारा ना,
अपाहिज लाग्गै प्यारा ना, क्यूं बिरथा उम्र गंवावै
 
अनपढ़ सरपंच चालू अफसर पता ना लाग्गै चोरी का,
कदम-कदम पै फाअदा ठावैं अनपढ़ की कमज़ोरी का,
ब्लैकमेल कदे धकमपेल यो खेल रहै सीनाज़ोरी का,
हबीब भारती अन्त करो इस काली नाग चटोरी का
यो टेम बीत ज्या भोरी का ते पाच्छै तैं पछतावै।