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तेज़ हवा जला दिल का दिया आज तक / शहरयार
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तेज़ हवा जला दिल का दिया आज तक
ज़ीस्त से इक अहद था, पूरा किया आज तक
मेरे जुनूँ के लिए तेरी गवाही बहुत
चाके-गरेबाँ न क्यों मैंने सिया आज तक
कितने समंदर मुझे रोज़ मिले राह में
बूंद भी पानी नहीं मैंने पिया आज तक
इल्म के इस शहर में कोई नहीं पूछता
कारे-सुख़न किस तरह मैंने किया आज तक
मेहरो-वफ़ा के सिवा दोस्त नहीं जानते
मुझको दिया है सदा, कुछ न लिया आज तक।