भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरा आना / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
कुछ दिन ...
जहाँ तुम ले गए थे
बड़ा हसीन सा तसव्वुर था
इश्क़ पानियों में तैरने लगा था
हवा चुपके से छलका जाती
आँखों का जाम .....
मन आवारा सा हुआ जाता
मैं हिमालय की चोटि पर बैठी
बो देना चाहती सारे मुहब्बत के बीज
आसमां के आँगन में ...
देखना चाहती ....
कैसे मुहब्बत की आग से
पिघलते हैं सितारे .
कैसे मुहब्बत जिस्म जलाती है
नदी डूब जाती है समंदर में
इक मुद्दत बाद
आज फिर ख्यालों में
मुस्कान आई है .....!!