भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरा कहा तुझी पर लागू नहीं होता है / विनय कुमार
Kavita Kosh से
तेरा कहा तुझी पर लागू नहीं होता है।
होते हैं सभी बिस्मिल पर तू नहीं होता है।
वे साज़ के पर्दे में आवाज़ उठाते हैं
कटने के लिए जिनका बाजू नहीं होता है।
पर्दे उठे हुए हैं बैठे हैं तमाशाई
नाटक यही कि नाटक चालू नहीं होता है।
कुछ तय न कर सकोगे जलती हुई भट्ठी में
पिघले हुए सिक्के का पहलू नहीं होता है।
मेरी नहीं सुनो तुम जादूग़रों से पूछो
कहते हैं जिसे जादू, जादू नहीं होता है।