तेरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था / फ़राज़
तेरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था वही तेरी जलवागरी रही
कि जो रौशनी तेरे जिस्म की थी मेरे बदन में भरी रही
तेरे शहर से मैं चला था जब जो कोई भी साथ न था मेरे
तो मैं किससे महवे-कलाम1 था ? तो ये किसकी हमसफ़री रही ?
मुझे अपने आप पे मान था कि न जब तलक तेरा ध्यान था
तू मिसाल थी मेरी आगही2 तू कमाले-बेख़बरी रही
मेरे आश्ना3 भी अजीब थे न रफ़ीक़4 थे न रक़ीब5 थे
मुझे जाँ से दर्द अज़ीज़ था उन्हें फ़िक्रे-चारागरी6 रही
मैं ये जानता था मेरा हुनर है शिकस्तो-रेख़्त7 से मोतबर8
जहाँ लोग संग-बदस्त9 थे वहीं मेरी शीशागरी रही
जहाँ नासेहों10 का हुजूम था वहीं आशिक़ों की भी धूम थी
जहाँ बख़्यागर11 थे गली-गली वहीं रस्मे-जामादरी12 रही
तेरे पास आके भी जाने क्यूँ मेरी तिश्नगी13 में हिरास1अ था
बमिसाले-चश्मे-ग़ज़ा14 जो लबे-आबजू15 भी डरी रही
जो हवस फ़रोश थे शहर के सभी माल बेच के जा चुके
मगर एक जिन्से-वफ़ा16 मेरी सरे-रह धरी की धरी रही
मेरे नाक़िदों17 ने फ़राज़’ जब मेरा हर्फ़-हर्फ़ परख लिया
तो कहा कि अहदे-रिया18 में भी जो खरी थी बात खरी रही
1.बात करने में मग्न 2. जानकारी, चेतना 3. परिचित 4. मित्र 5. शत्रु 6. उपचार की धुन 7. टूट फूट 8. ऊपर, सम्मानित 9. हाथ में पत्थर लिए हुए 10. उपदेश देने वाले 11.कपड़ा सीने वाले 12. पागलपन की अवस्था में कपड़े फाड़ने की रीत
13.प्यास 1अ. आशंका निराशा 14.हिरन की आँख की तरह 15.दरिया के किनारे 16.वफ़ा नाम की चीज़ 17. आलोचक 18. झूठा ज़माना