भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरा कौन संघाती हरि बिन! / बिन्दु जी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरा कौन संघाती हरि बिन!
झूठा जगत जमाती हरि बिन!!
नारी सब सुख पावत पति सों, दिन प्रति हिय हरषाती।
जब बल रूप घटे सोई नारी कलह करति दिन राती॥
भले दिनन के साथी सब हैं बन्धु सखा सुत नाती।
पूरे दिनन कोउ बात न पूछत बँट प्रण के घाती॥
कंचन द्वार हजारं झूमत एहि हथिन की पाती।
काल करत जब अपनी फेरी सम्पति काम न आती॥
अब ही जाग जतन कुछ कर ले फिर करिहें केहि भाँती।
जब चेतन गहन ‘बिन्दु’ बहि रहे बुझिहै जीवन बाती॥