तेरा ख़याल है दिल-ए-हैराँ लिए हुए / जगन्नाथ आज़ाद
तेरा ख़याल है दिल-ए-हैराँ लिए हुए
या ज़र्रा आफ़ताब का सामाँ लिए हुए
देखा उन्हें जो दीदा-ए-हैराँ लिए हुए
दिल रह गया जराहत-ए-पिनहाँ लिए हुए
मैं फिर हूँ इल्तिफ़ात-ए-गुरेज़ाँ का मुन्तज़िर
इक याद-ए-इल्तिफ़ात-ए-गुरेज़ाँ लिए हुए
मैं छेड़ने लगा हूँ फिर अपनी नई ग़ज़ल
आ जाओ फिर तबस्सुम-ए-पिनहाँ लिए हुए
क्या बे-बसी है ये के तेरे ग़म के साथ साथ
मैं अपने दिल में हूँ ग़म-ए-दौराँ लिए हुए
फ़ुर्क़त तेरी तो एक बहाना थी वरना दोस्त
दिल यूँ भी है मेरा ग़म-ए-पिनहाँ लिए हुए
अब क़ल्ब-ए-मुज़्तरिब में नहीं ताब-ए-र्द-ए-हिज्र
अब आ भी जाओ दर्द का दरमाँ लिए हुए
सिर्फ़ एक शर्त-ए-दीदा-ए-बीना है ऐ कलीम
ज़र्रे भी हैं तजल्ली-ए-पिनहाँ लिए हुए
मैं ने ग़ज़ल कही है जिगर की ज़मीन में
दिल है मेरा नदामत-ए-पिनहाँ लिए हुए
आज़ाद ज़ौक़-ए-दीद न हो ख़ाम तो यहाँ
हर आईना है जल्वा-ए-जाना लिए हुए