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तेरा नाम क्या है मेरे प्रेम? / विजय कुमार सप्पत्ति

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अचानक ही ये कैसे अहसास है
कुछ नाम दूं इसे
या फिर ;
अपने मौन के साथ जोड़ दूं इसे

किसी मौसम का नया रंग हो शायद
या फिर हो ज़िन्दगी की अनजानी आहट
एक सुबह हो ,सूरज का नया रूप लिये

पता नहीं …..
मेरी अभिव्यक्ति की ये नयी परिभाषा है

ये कैसे नये अहसास है
मौन के भी शब्द होतें है
क्या तुम उन्हें सुन रही हो .....

पलाश की आग के संग ...
गुलमोहर के हो बहुत से रंग
और हो रजनीगंधा की गंध
जो छा रही है मन पर
और तन पर
तेरे नाम के संग …..

तेरा नाम क्या है मेरे प्रेम ?