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तेरा पैग़ाम आया तो है तुझसे झूट क्या बोलें / कांतिमोहन 'सोज़'

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तेरा पैग़ाम आया तो है तुझसे झूट क्या बोलें ।
अक़ीदा डगमगाया तो है तुझसे झूट क्या बोलें ।।

हमें मालूम था फ़ानी है बेमानी है ये दुनिया
पर इससे दिल लगाया तो है तुझसे झूट क्या बोलें ।

हमारा हाल सुनकर तू हँसा और हम हुए नादिम
मगर फिर फिर सुनाया तो है तुझसे झूट क्या बोलें ।

किसी मज़लूम की इस्मत की बोली जब लगी अपना
कलेजा मुँह को आया तो है तुझसे झूट क्या बोलें ।

हमें मालूम था तूफ़ान इसको भी बुझा देगा
दिया फिर भी जलाया तो है तुझसे झूट क्या बोलें ।

तू मेरी जान था फिर भी मेरे अहवाल पर तूने
ज़माने को हँसाया तो है तुझसे झूट क्या बोलें ।

तेरा पैग़ाम पाकर सोज़ को जलती दुपहरी में
नज़र साया सा आया तो है तुझसे झूट क्या बोलें ।।