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तेरा प्यार नहीं मिल पाया / दिनेश गौतम
Kavita Kosh से
सब कुछ मिला यहाँ पर मुझको, बिन माँगे यूँ अनायास ही,
लेकिन मेरे पागल मन को तेरा प्यार नहीं मिल पाया।
तेरे नयन की कारा होती, हो जाता मन बंदी मेरा,
हाय कि मुझको ऐसा कोई कारागार नहीं मिल पाया।
तेरे चरण चूमकर मेरा आँगन उपकृत हो जाता पर,
मेरे आँगन की मिट्टी को यह उपहार नहीं मिल पाया।
पास खड़े थे हम-तुम दोनों, एक मौन था फिर भी लेकिन,
मन की बात तुम्हें मैं कहता, वह अधिकार नहीं मिल पाया।
स्वप्न बेचारे रहे अधूरे, मिट्टी के अधबने खिलौने,
उनको तेरे सुघड़ हाथ से रूपाकार नहीं मिल पाया।
रंग भरे इस जग ने सबको बाहों में भर-भर कर भेंटा,
मैं शापित हूँ शायद मुझको, यह संसार नहीं मिल पाया।