भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरा प्रेम हृदय में जिसके / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
तेरा प्रेम हृदय में जिसके
हुआ अंकुरित, बना विभोर,
उसे मर्म में छिपा, अश्रु से
सींचेगा वह, प्रिय, निशि भोर!
भले परीक्षा मिस या छल से
झटके तू अपना अंचल
कभी न छोड़ेगा वह दामन
फिरे न जब तक करुणा कोर!