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तेरा रूप निखर कर जब शृंगार में आया / विजय 'अरुण'
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तेरा रूप निखर कर जब शृंगार में आया
मन से उठ कर एक ज्वार-सा प्यार में आया।
पैरों के घुंघरू वैसे ऊंचा बजते थे
पर आनन्द तो पायल की झंकार में आया।
सागर में कितने ही बड़े-बड़े मोती हैं
पर है मुल्य उसी का जो बाज़ार में आया।
स्थिर पानी में नाव चलाना क्या दुष्कर था
परखा गया वह मांझी जब मंझधार में आया।
'अरुण' प्रेमिका से जैसी भी हुई हों बातें
रस ही आया; प्यार में आया, रार में आया।