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तेरा साथ / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
तेरे साथ होने का फ़ख्र
अब मेरी मुस्कानों में साफ झलकता है
फिर से कुछ नया कर गुजरने को जी करता है
थमी, ठहरी-सी थी दुनिया ये मेरी
मगर
अब हर क़दम तेरे साथ रख
नयी दिशा को मुड़ने की तमन्ना रखता है।