भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरा हम ने जिस को तलब-गार देखा / मीर 'सोज़'
Kavita Kosh से
तेरा हम ने जिस को तलब-गार देखा
उसे अपनी हस्ती से बे-ज़ार देखा
अदा ही हसरत में सब मर गए सच
तजल्ली को किस ने ब-तकरार देखा
तेरी आँख भर जिस ने तस्वीर देखी
वो तस्वीर सा नक़्श-ए-दीवार देखा
अजब कुछ ज़माने की है रस्म यारो
जो है काम का उसे को बे-कार देखा
व-लेकिन अचम्भा बड़ा मुझ को ये है
के टुक ‘सोज़’ का गर्म बाज़ार देखा