भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरा हर लफ्ज़ मेरी रूह को छूकर निकलता है / अशोक अंजुम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरा हर लफ्ज़ मेरी रूह को छूकर निकलता है.
तू पत्थर को भी छू ले तो बाँसुरी का स्वर निकलता है.

कमाई उम्र भर कि और क्या है, बस यही तो है
में जिस दिल में भी देखूं वो ही मेरा घर निकलता है.

मैं मंदिर नहीं जाता मैं मस्जिद भी नही जाता
मगर जिस दर पर झुक जाऊं वो तेरा दर निकलता है

ज़माना कोशिशें तो लाख करता है डराने की
तुझे जब याद करता हूँ तो सारा दर निकलता है.

यहीं रहती हो तुम खुशबू हवाओं की बताती है
यहाँ जिस ज़र्रे से मिलिए वही शायर निकलता है.