तेरी-मेरी जिन्दगी का गीत एक है / हरीश भादानी
तेरी-मेरी जिन्दगी का गीत एक है
क्या हुआ जो
रागिनी को पीर भागई
क्या हुआ जो
चाँदनी को नींद आगई
स्याह घाटियों में कोई बात खो गई
क्या हुआ जो
पाँखुरी पे रात रो गई
कि हर घड़ी उदास है
फिर भी एक आस है
कि लाल-लाल भोर की
कि पंछियों के शोर की
तेरे-मेरे जागरण की रीत एक है
तेरी-मेरी जिन्दगी का गीत एक है
क्या हुआ कली जो
अनमनी-सी जी रही
क्या हुआ जो धूप
सब पराग पी रही
अभी खिली अभी झुकी-झुकी-सी ढल रही
क्या हुआ हवा
रुकी-रुकी सी चल रही
कि हर कदम पे आग है
फिर भी एक राग है
कि साँझ के ढले-ढले
कि एक नीड़ के तले
तेरी-मेरी मंजिलों की सीध एक है
तेरी-मेरी जिन्दगी का गीत एक है
आ, कि तू, मैं
दूरियों को साथ ले चलें
आ, कि तू, मैं
बंधनों को बांधकर चलें
क्या हुआ जो पंथ पर धुएँ का आवरण
किन्तु कुछ भी हो
कहीं रुके-थके नहीं लगन
कि हर किसी ढलान पर
कि हर किसी चढ़ान पर
कि एक साँस एक डोर से
कि एक साथ एक छोर से
तेरी-मेरी जिन्दगी की प्रीत एक है
तेरी-मेरी जिन्दगी का गीत एक है