भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरी आँखों में क्या मद है जिसको पीने आता हूँ / अज्ञेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरी आँखों में क्या मद है जिस को पीने आता हूँ-
जिस को पी कर प्रणय-पाश में तेरे मैं बँध जाता हूँ?
तेरे उर में क्या सुवर्ण है जिस को लेने आता हूँ-
जिस को लेते हृदय-द्वार की राह भूल मैं जाता हूँ?
तेरी काया में क्या गुण है जिस को लखने आता हूँ-
जिस को लख कर तेरे आगे हाथ जोड़ कर जाता हूँ?

मुलतान जेल, 11 दिसम्बर, 1933