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तेरी आँखों में क्या मद है जिसको पीने आता हूँ / अज्ञेय
Kavita Kosh से
तेरी आँखों में क्या मद है जिस को पीने आता हूँ-
जिस को पी कर प्रणय-पाश में तेरे मैं बँध जाता हूँ?
तेरे उर में क्या सुवर्ण है जिस को लेने आता हूँ-
जिस को लेते हृदय-द्वार की राह भूल मैं जाता हूँ?
तेरी काया में क्या गुण है जिस को लखने आता हूँ-
जिस को लख कर तेरे आगे हाथ जोड़ कर जाता हूँ?
मुलतान जेल, 11 दिसम्बर, 1933