तेरी आँख नम तू बुझा हुआ / विनय कुमार
तेरी आँख नम तू बुझा हुआ तुझे क्या किसी की तलाश है।
तू मुझे जला ले चिराग़ सा तुझे रोशनी की तलाश है।
तुझे रोशनी की तलाश है तुझे देखना है जहान को
मुझे कोख होना क़बूल है, मुझे तीरग़ी की तलाश है।
मुझे खुशबुओं की तलाश थी, मैं गुलों के पास नहीं गया
वही जाके नोचे गुलाब को जिसे पंखुड़ी की तलाश है।
जहाँ हँस सकूँ, जहाँ रो सकूँ, जहाँ लम्बी तान के सो सकूँ
जहाँ अपनी बातों को बो सकूँ, मुझे उस ज़मीं की तलाश है।
जहाँ खो सकूँ, जहाँ पा सकूँ, जहाँ दोस्त सबको बना सकूँ
जहाँ पहला शेर सुना सकूँ, मुझे उस गली की तलाश है।
जिसे पी सकूँ, जिसे जी सकूँ, जो फटे अगर तो मैं सी सकूँ
पसे ज़िंदगी मैं पडा हुआ मुझे जिं़दगी की तलाश है।
जो चढे़ तो उतरे बिखर-बिखर कि ज़मीन जाए संवर-संवर
जिसे सागरों की तलब नहीं उसे मुझे उस नदी की तलाश है।
जो शुरू हो आबे हयात से जो खतम हो बाग़े निषात में
जहाँ खंजरों का चलन न हो मुझे उस सदी की तलाश है।
तू जहाँ कहेगा झुकाओ सर, वहाँ सर कभी न झुकाएँगें
वो ख़ुदा नहीं न वो देवता जिसे बंदगी की तलाश है।