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तेरी कंचन सी काया पल में ढल जाय / बिन्दु जी
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तेरी कंचन सी काया पल में ढल जाय।
बालक युवा जरठ पन बीते,
अंत समय अग्नि में जल जाय॥ तेरी...
जरता है जो दिन-रात हंसी-खेलों में,
ज़िन्दगी बीत जायेगी इन्हीं झमेलों में।
तू तो गफलत में है तुझको पता चलता है,
हर एक श्वास तेरा कीमती निकलता है।
जगत जाल में भटक रहा है,
स्वर्ण घड़ी बातों में तल जाय॥ तेरी...
तेरे असलों का सच्चा हिसाब क्या होगा,
मनुष्य जन्म पै पाप का वजन करके,
कभी है धर्म तो श्याम का भजन करके।
जीवन का क्षणिक भरोसा क्या है?
जैसे ‘बिन्दु’ सिन्धु मिल जाय॥ तेरी...