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तेरी ख़ुशबू जेह्‌न से मेरे कभी जाती नहीं / रविकांत अनमोल

तेरी ख़ुशबू ज़ह्‌न से मेरे कभी जाती नहीं
और तुझको याद भी मेरी कभी आती नहीं

घूमता रहता है जिसका अक्स आँखों में मिरी
ज़िन्दगी उसको कभी क्यों सामने लाती नहीं

मैं भी उसके दर नहीं जाता हूं ख़ुशियां मांगने
ज़िन्दगी भी घर मिरे लेकर हँसी आती नहीं

एक मैं हूँ ख़ाब तक में हूँ मुख़ातिब उस ही से
ज़िन्दगी तो नाम भी लब पर मिरा लाती नहीं

ज़िन्दगी पर हर बशर ऐसे नहीं होता फ़िदा
ज़िन्दगी हर शख़्स को इस दर्जा तरसाती नहीं

तीरगी का दौर चारों ओर तारी हो गया
चांद तारे भी नहीं दीपक नहीं बाती नहीं