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तेरी गति कितहुँ न जानी हो / सहजोबाई
Kavita Kosh से
तेरी गति कितहुँ न जानी हो।
ब्रह्म सेस महेसुर थाके, चारो बानी हो॥
बाद करंते सब मत थाके, बुद्धि थकानी हो।
विद्या पढ़ि-पढ़ि पंडित थाके, अरु ब्रह्मज्ञानी हो॥
सबके परे जुअन मम हारी, थाह न आनी हो।
छान बीन करि बहुतक थाकी, भई खिसानी हो॥
सुर नर मुनिजन गनपति थाके, बड़े विनानी हो।
चरन दास थकी 'सहजोबाइ' भई सिरानी हो॥