तेरी गेंद / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
गुपचुप... गुपचुप... गुपचुप
तेरी गेंद पड़ी है कोने में
कब से बेजान–सी
जैसे छोड़ दिया तूने संग उसका
कि अब दुनिया में बिलकुल ही अकेली
गुमसुम... गुमसुम... गुमसुम...
एक टांग पर खड़ी है कब से
जैसे मुर्गा बना दिया तूने
ली नहीं फिर कोई
सुधबुध... सुधबुध... सुधबुध
तुझे भले ही न हो चिंता
पर उसे परवाह बहुत है तेरी
क्योंकि गेंद की सारी चेतना है तुझसे
जा, लात से अपनी धकेल दे
या हाथों की अंजुरी में झेल ले
या उठाकर फेंक ही दे
टुप्पढुप्प... टुप्पढुप्प... टुप्पढुप्प
गेंद का घर भर में टप्पे खाते
लुढ़कते, बजते रहना
तेरी सेहत की गवाही है
गुमसुम हैं खिलौने
क्योंकि गेंद तेरी
न हिली, न बोली, न खेली
तू उसकी प्यारी सहेली
बांध दे पैरों में नूपुर
खिल उठेगा नाच उसका
रुन झुन... रुन झुन... रुनझुन