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तेरी चाहत में दिन बिताता हूँ / रविकांत अनमोल

तेरी चाहत में दिन बिताता हूँ
ख़ुद ही रोता हूँ मुस्कुराता हूँ

मैं जहां हूँ ख़ुशी न ग़म है वहां
अपनी मस्ती में गुनगुनाता हूँ

तू मिले तो ज़रा क़रार आए
तेरे मिलने को छटपटाता हूँ

आँख भर आती है ख़ुशी से कभी
वो समझते हैं ग़म उठाता हूँ