भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरी ज़बाँ से ख़स्ता कोई ज़ार है कोई / 'क़ाएम' चाँदपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरी ज़बाँ से ख़स्ता कोई ज़ार है कोई
प्यारे ये नहव ओ सर्फ ये गुफ्तार है कोई

ठोकर में हर कदम की तड़पते हैं दिल कई
ज़ालिक इधर तो देख ये रफ्तार है कोई

जूँ शाख़-ए-गुल है फ्रिक में मेरी शिकस्त की
मेरा गर उस चमन में हवा-दार है कोई

ज़ालिम ख़बर तो ले कहीं ‘काएम’ ही ये न हो
नालान ओ मुज़्तरिब पस-ए-दीवार है कोई