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तेरी जुल्फ़ों के साये में, पसीना आ गया / तारा सिंह
Kavita Kosh से
तेरी जुल्फ़ों के साये में, पसीना आ गया
इश्क का हौसला शर्त है, शर्त पर जीना आ गया
बख्त से शिकायत करूँ, मुझमें वो ताकतें रहीं कहाँ
पहले गम खाता था , अब पीना आ गया
छूटूँगा जिश्त के फ़ंदे से कब, किस दिन और कहाँ
जनाज़ा उठायेगा कौन, ख़ुदा से पूछने मदीना आ गया
कहूँ तो क्या कहूँ,किसकी तिरछी निगाह,मेरे सीने को
छलनी किये रखती थी, उस पर दिल कमीना आ गया
बेसब्र, बे-इख्तियार दिल, पहले बात-बात पर रहता
था कराहता, मगर अब उसे दर्द को पीना आ गया