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तेरी झांकी के माहं गोल मारूं मैं बांठ गोफिया सण का / लखमीचंद

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तेरी झांकी के माहं गोल मारूं मैं बांठ गोफिया सण का
एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का

लांबे-लांबे केश तेरे जंणू छारहि घटा पटेरे पै
ढुंगे ऊपर चोटी काली जंणू लटकै नाग मंडेरे तै
घणी देर मैं नजर गयी तेरे चंदरमाँ से चेहरे पै
गया भूल पाछली बातां नै मैं इब सांग करूँगा तेरे पै

मैं ख़ास सपेरा तू नागण काली, तेरा जहर दीख रह्या सै फण का
एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का

बिन बालम के तेरे यौवन की रेह-रेह माटी हो ज्यागी
कितै डूबण की जानैगी तेरै गात उचाटी हो ज्यागी
कितै मरण की सोचैगी तेरी तबियत खाटी हो ज्यागी
मेरी गेल्याँ चाल देख मेरी राज्जी जाटी हो ज्यागी

हठ पकड़ कै बैठी सै रै जंणू शेर सै यो बब्बर का
एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का

दुनिया मैं लिया घूम मिली मनै इसी लुगाई कोन्या
इतनी सुथरी शान शिकल की कोए दी दिखाई कोन्या
खुनी खेल तेरे गारू मैं दर्द समाई कोन्या
कुंवारापण तेरा दिखै सै तू इब लग ब्याही कोन्या

हाली बिन समरै ना यो तेरा खेत पड़या सै रण का
एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का

छाती खिंचमां पेट सुकड़मां आँख मिरग की ढाल परी
नाक सुआसा मुहं बटुवा सा होठ पान तै बी लाल परी
लेरी रूप गजब का गोल, तू किसे माणस का काल परी
लख्मीचंद था न्यूं सोचैगी करकै दुनिया ख्याल परी

मेरा गाम सै सिरसा जाटी, मैं चेला मानसिंह बामण का
एक निशाना चुकण दयूं ना मैं छलिया बालकपण का