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तेरी नज़रों से क्या गिरा हूँ मैं / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'
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तेरी नज़रों से क्या गिरा हूँ मैं
अपनी नज़रों में गिर गया हूँ मैं
वहशी दीवाना सिरफिरा हूँ मैं
खैर जो भी हूँ आपका हूँ मैं
अब कोई मेहरबाँ हुआ तो क्या
अब तो दुनिया से उठ रहा हूँ मैं
अपने घर से उठा है सैले बला
अपने अश्क़ों में बह गया हूँ मैं
ऐ अजल आ के मेरी मेहमां हो
राह मुद्दत से तक रहा हूँ मैं
हो चुके हैं अलम गले का हार
ज़िंदा क्योंकर हूँ सोचता हूँ मैं
कैसे सुलझेगी इश्क़ की गुत्थी
एक उलझन में फंस गया हूँ मैं
बात अपनी गरज़ की है 'अंजान'
तू मेरा हो न हो तेरा हूँ मैं।