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तेरी नज़र का रंग बहारों ने ले लिया / साग़र सिद्दीकी

तेरी नज़र का रंग बहारों ने ले लिया
अफ़्सुर्दगी का रूप तरानों ने ले लिया

जिस को भरी बहार में ग़ुंचे न कह सके
वो वाक़िआ' भी मेरे फ़सानों ने ले लिया

शायद मिलेगा क़रिया-ए-महताब में सुकूँ
अहल-ए-ख़िरद को ऐसे गुमानों ने ले लिया

यज़्दाँ से बच रहा था जलालत का एक लफ़्ज़
उस को हरम के शोख़ बयानों ने ले लिया

तेरी अदा से हो न सका जिस का फ़ैसला
वो ज़िन्दगी का राज़ निशानों ने ले लिया

अफ़्साना-ए-हयात की तकमील हो गई
अपनों ने ले लिया कि बेगानों ने ले लिया

भूली नहीं वो क़ौस-ए-क़ुज़ह की सी सूरतें
'साग़र' तुम्हें तो मस्त धियानों ने ले लिया