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तेरी नाम नकेल / बालकृष्ण गर्ग

मचा प्लेग का शोर,
हो गई बिल्ली मौसी त्रस्त।
चूहेमल सर्वत्र घूमने –
लगे निडर, अलमस्त।
मेहरबान अल्लाह हुआ ,
जो उनका खुला नसीब।
मौसी को वे लगे चिढ़ाने –
दिखा-दिखाकर जीभ।
बिल्ली बोली- ‘प्लेग – फ्लेग तो
चार दिनों का खेल।
जल्दी ही डालूँगा बेटा,
तेरी नाक नकेल!
 [रचना: 22 दिसंबर 1995]