भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरी बज़्म-ए-तरब में सोज़-ए-पिन्हाँ लेके आया हूँ / जगन्नाथ आज़ाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



तेरी बज़्म-ए-तरब में सोज़-ए-पिन्हाँ लेके आया हूँ|
चमन में यादे-अय्याम-ए-बहाराँ लेके आया हूँ|

तेरी महफ़िल से जो अरमान-ओ-हसरत लेके निकला था,
वो हसरत लेके आया हूँ वो अरमाँ लेके आया हूँ|

तुम्हारे वास्ते ऐ दोस्तो मैं और क्या लाता,
वतन की सुबह और शाम-ए-ग़रीबाँ लेके आया हूँ|

मैं अपने घर में आया हूँ मगर अन्दाज़ तो देखो,
के अपने आप को मानिन्द-ए-महमाँ लेके आया हूँ|