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तेरी बस्ती का मंज़र देखती हूँ / विशाखा विधु
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तेरी बस्ती का मंजर देखती हूँ
तबाही आज घर-घर देखती हूँ।
बज़ाहिर मोम का पैकर है लेकिन
वो अंदर से है पत्थर देखती हूँ।
सितारे तोड़ना मुश्किल है लेकिन
मैं तितली को पकड़कर देखती हूँ।
जमाना याद रक्खेगा हमेशा
वतन पे आज मरकर देखती हूँ।
सितमगर का कसीदा लिख रहे हैं
यहां ऐसे सुखनवर देखती हूँ।