तेरे-मेरे बीच कहीं है / ताराप्रकाश जोशी
तेरे मेरे बीच कहीं है
एक घृणामय भाईचारा ।
सम्बन्धों के महासमर में
तू भी हारा मैं भी हारा ।।
बँटवारे ने भीतर-भीतर,
ऐसे-ऐसी डाह जगाई,
जैसे सरसों के खेतों में,
सत्यानासी उग - उग आई,
तेरे मेरे बीच कहीं है
टूटा - अनटूटा पतियारा ।
अपशब्दों की बन्दनवारें,
अपने घर हम कैसे जाएँ,
जैसे साँपों के जंगल में
पंछी कैसे नीड़ बनाएँ,
तेरे मेरे बीच कहीं है
भूला - अनभूला गलियारा ।
आहत सोए जर्जर जागे
जीवन ऐसी एक व्यथा है,
जैसे किसी फटी पोथी में
लिखी हुई प्रतिशोध कथा है,
तेरे मेरे बीच कहीं है
झूठा - अनझूठा हरकारा ।
बचपन की स्नेहिल तस्वीरें
देखें तो आँखें दुखती हैं,
जैसे अधमुरझी कलियों से
ढलती रात ओस झरती है,
तेरे मेरे बीच कहीं है
बूझा - अनबूझा उणियारा ।
जय का तिमिर महोत्सव तेरा
क्षय का अग्नि - पर्व है मेरा,
तेरे घर शापों का डेरा
मेरे घर शापों का फेरा,
तेरे मेरे बीच अभी है
डूबा - अनडूबा उजियारा ।