तेरे जैसी बीर दुसरी जहान मैं कोन्या / गन्धर्व कवि प. नन्दलाल
सांग:- विराट पर्व (अनुक्रमांक-3)
तेरे जैसी बीर दुसरी जहान मैं कोन्या,
तुर्की-बेल्जियम अमेरिका, जापान मैं कोन्या ।। टेक ।।
लरजती कदली तरह अनिल मैं, खटक लागै ऋषियों के दिल मैं,
टर्की-रुमशाम काबूल-चीन, ईरान मैं कोन्या।।
बण्या मुख चँद्रमा सी कोर,शशी नै निरखै जीमी चकोर,
श्यालकोट लाहौर और, मुल्तान मैं कोन्या।।
नासिका लख लाजै कीर विहंग, कटि लख हो शर्मिन्दा सिंह,
गौड बंग और दार्जिलिंग, भुटान मैं कोन्या।
दौड़:-
प्राण प्यारी बण्जाइये म्हारी, अंहकारी जब कह सुना,
मेरी तो गलती कोन्या,बिन बेरै मैं दुख लिन्ही पा,
चालो चालो मेरे साथ मैं क्युं राखी सै देर लगा,
सुंदर मंदिर जीन के अंदर नार गलीचे दिए बिछा,
बैठी रोज मार मौज, सैन्य फौज पै हुकम चला,
निरख महल करो सैल, दुं तेरी टहल मैं दासी ला,
बिद गई लाग भोगो सुहाग, निरख बाग अब देरी क्या,
बण्जाइये पटरानी श्यानी, पानी भर मत लाया करीये,
मन प्रयोजन करके खोजन,अच्छा भोजन खाया करीये,
करो मेरे तै मेल सीस पै तेल फलेल रमाया करीये,
गुलिस्तान दरमियान सजा ले यान, सैल को जाया करीये,
चंद्रकला सी भूखी प्यासी बासी बनफल खावै सै,
किया मुझे कफ ज्ञान तेरी लख श्यान भान सरमावै सै,
मृग नयनी पिक बैनी पैनी धार मार तरसावै सै,
सुंदर गोल कपोल बोल सुण कोयल भी सकुचावै सै,
सुुंदर महल अटारी प्यारी, पर्यकं पै पोढ्या करीये,
विमल दुकल रेशमी साड़ी खुश हो कै ओढ्या करीये,
जलद भूल ज्या चातक को मुझे एसे ना छोड्या करीये,
मैं मयंक तू झाल निधि की दर्शन कर प्रोढ्या करीये,
नखरे अदा नजाकत से ताण्या घुंघट डोड्या करीये,
समता तूल ज्ञान का चरखा सुख मन घट लोढ्या करीये,
वैद्य रसोईया कवि पंडित सै बैर लगाना ना चाहिए,
ब्राह्मण गऊ अन्न अग्नि कै पैर लगाना ना चाहिए,
केला आम काट कै घर मैं कैर लगाना ना चाहिए,
जख्मी जीव तड़फते घा पै जहर लगाना ना चाहिए,
धर्म तराजु सत की डांडी तोलण का के डर हो सै,
तरबूज काकड़ी खरबूजे नै छोलण का के डर हो सै,
प्यारे आगै दिल की घुंडी खोलण का के डर हो सै,
जीभ दई सै परमेश्वर नै बोलण का के डर हो सै,
गोल गोल मुखडे से बोल तका तोल क्यूँ रही बणा,
क्यांका दुख सै मनै बता दे अहंकारी जब कही सुणा,
तभी द्रोपदी भरी रोष मै कहण लगी बोली धमका,
सत्यानाशी डूबैगा लाज शर्म सब रहया गँवा,
मत गंदे अलफाज कह कर होश पाप लागै सै,
मैं तेरी बहन की दासी सूं तू मेरा बाप लागै सै,
नेकी करे नेक नामी, बदी करे बदनामी,
चुगली करे बुराई मिलती धीरज करे मुलामी,
सख्त सजा उनको मिलती जो करते खोट गुलामी,
जड़कैं हाथ जंजीर, बैठा दैं दरवाजे कै शामी,
रती पती का जोश बढ़ै जब सुमन चाप लागै सै,
काम क्रोध मद लोभ मोह दुख भोग और भग मैं हो सै,
द्वेष ईर्ष्या आशा तृष्णा से दिल अग मैं हो सै,
दान पुण्य शुभ कर्म किए से किर्ती जग मैं हो सै,
पापी नर को दंड मिलै जो सूरपूर मग मै हो सै,
कुम्भी पाक कुंड के अंदर जपण जाप लागै सै,
नहीं आण और काण जाण मैं तेरी बहन की दासी,
पर घर अंदर करूँ गुजारा खाँ सूं टुकड़े बासी,
दुखियारी नै छेड़ै सै डूबैगा सत्यानासी,
हाथ जोड़ कैं तभी द्रोपदी राणी कै जब धोरै जा,
धोरै जाकै राणी को मुख से वाणी कह सुणा,
कह सुण कै नै री माता तेरे भाई नै ले समझा,
खोटी बाणी बोलै सै सुन सुन कै नै होगे घा,
कीचक नै समझावण लागी कीचक की वा बहाण,
डुबै गा निर्भाग कुछ मेरी बी कर काण,
दुनियादारी के थूकैगी धर्म की करै सै हाण,
मान के नै कहया भाई ईब घरनै जाइये रै,
रानी जब कहण लगी देर मतनै लाइये रै,
फेर कदे भेज दुंगी मन समझाइये रै,
कहते केशोराम नाम परमेश्वर का गाइये रै,
कहते शंकरदास गुरुदादा, नंदलाल भेष रख सादा,
क्या वरणू ताकत ज्यादा, मेरी जबान मैं कोन्या।।