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तेरे तीरे-नज़र का घायल हूँ मैं/ विनय प्रजापति 'नज़र'
Kavita Kosh से
लेखन वर्ष: 2004
तेरे तीरे-नज़र का घायल हूँ मैं
तेरे हुस्न के पीछे पागल हूँ मैं
शैदाई दीवाना आवारा बादल हूँ मैं
तेरे तीरे-नज़र का घायल हूँ मैं
तेरे ख़ाब पलकों में छिपाये फिरता हूँ
गिर न जायें आँसू बनके डरता हूँ
यह है इब्तदा-ए-सहर-ए-मोहब्बत
इन्तहाने-इम्तिहाँ के लिए मरता हूँ
ऊदी-ऊदी साँसों से सीने में जलन है
सूखा-सूखा मेरे दिल का गुलशन है
हैं दूर तक वदियों में पानी की तहें
फिर किसके लिए प्यासा मेरा मन है