तेरे तौसन को सबा बांधते हैं / ग़ालिब
तेरे तौसन को सबा बांधते हैं
हम भी मज़मूं की हवा बांधते हैं
आह का किस ने असर देखा है
हम भी एक अपनी हवा बांधते हैं
तेरी फ़ुरसत के मुक़ाबिल ऐ उमर
बरक़ को पा ब हिना बांधते हैं
क़ैद-ए हसती से रिहाई मालूम
अशक को बे सर-ओ-पा बांधते हैं
नशशह-ए रनग से है वा-शुद-ए गुल
मसत कब बनद-ए क़बा बांधते हैं
ग़लतीहा-ए मज़ामीं मत पूछ
लोग नाले को रसा बांधते हैं
अहल-ए तदबीर की वा-मांदगियां
आबिलों पर भी हिना बांधते हैं
सादह पुरकार हैं ख़ूबां ग़ालिब
हम से पैमान-ए-वफ़ा बांधते हैं
पांव में जब वह हिना बांधते हैं
मेरे हाथों को जुदा बांधते हैं
हुसन-ए अफ़सुरदह-दिलीहा रनगीं
शौक़ को पा ब हिना बांधते हैं
क़ैद में भी है असीरी आज़ाद
चशम-ए ज़नजीर को वा बांधते हैं
शैख़ जी क़ाबा का जाना मालूम
आप मसजिद में गधा बांधते हैं
किस का दिल ज़ुलफ़ से भागा कि असद
दसत-ए शानह ब क़ज़ा बांधते हैं