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तेरे दरबार मे मोह। मेरा तन दीप जल जाये / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
तेरे दरबार में मोहन मेरा तन दीप जल जाये।
तेरी चौखट पर प्यारे जान ये मेरी निकल जाये।।
तू भर ले बाँह में टूटा हुआ जर्जर बदन मेरा
तुझे मैं देख लूँ इक बार मेरा मन बहल जाये।।
है तेरे सांवरे मुख पर झुके जो केश घुंघराले
उसी घूंघर भरी लट में उलझ ये मेरा दिल जाये।।
मेरे मन के गगन में हो घिरी घनश्याम की मूरत
तेरा माधुर्य छू लूँ तो हृदय मेरा पिघल जाये।।
कठिन वृंदा विपिन हो या कि हो यमुना पुलिन प्यारा
प्रणय की राह रपटीली पे मेरा पग फिसल जाये।।
तुझे रजनी सुला जाए पवन करता व्यजन तुझको
तितलियाँ बन पड़ी सपनों में तेरी आँख मल जाये।।
बजा दे साँवरे आकर वो प्यारी मद भरी वंशी
तेरी ही याद में घनश्याम मेरा आज कल जाये।।