भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरे देवता को मैं नकारता हूँ / असंगघोष
Kavita Kosh से
तूने कहा
जल देवता
मैंने मान लिया
तूने कहा
वायु देवता
मैंने मान लिया
तूने कहा
अग्नि देवता
मैंने मान लिया
तूने कहा
पृथ्वी देवता
मैंने पृथ्वी को मान लिया देवता
तूने कहा
सूर्य देवता
मैंने यह भी मान लिया
मैं मानता भी क्यों नहीं
ये सभी आवश्यक थे
मेरे जीने के लिए
तूने फिर कहा
इन्द्र देवता
मैं क्यों मानूँ
तेरे इस छली,
कुटिल और विलासी को
देवता,
इसके बाद के
तेरे हर देवता को मैं नकारता हूँ।