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तेरे बाद मौसम सुहाने नहीं हैं / सिराज फ़ैसल ख़ान

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तेरे बाद मौसम सुहाने नहीं हैं
फिज़ाओं में अब वो तराने नहीं हैं

बढ़ाया था आगे हमें दोस्तों ने
कि आशिक़ तो हम भी पुराने नहीं हैं

किसी काम के अब नहीं रह गए ये
मगर ख़त तुम्हारे जलाने नहीं हैं

ये बिकती है ये बात सबको पता है
मोहब्बत की लेकिन दुकानें नहीं हैं

आओ मोहब्बत में वादे करें हम
मगर याद रखना निभाने नहीं हैँ

किसी काम की फिर नहीं उनकी सूरत
मेरे साथ उनके फसाने नहीं हैं

पतंगे तो अब भी उड़ाएँगे लेकिन
हमे अब कबूतर उड़ाने नहीं हैं

ये माना कि सब ज़ख़्म अपनो से पाए
मगर दुश्मनों को दिखाने नहीं हैं

तभी दोस्ती अब मैँ करता नहीं हूँ
मुझे और दुश्मन बनाने नहीं हैं

ख़ुदा सबको देता नहीं है मोहब्बत
ये पल भूलकर भी भुलाने नहीं हैं