भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरे बिन / रमेश गौड़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैसे सूखा ताल बचा रहे या कुछ कंकड़ या कुछ काई
जैसे धूल भरे मेले में चलने लगे साथ तन्हाई,
तेरे बिन मेरे होने का मतलब कुछ-कुछ ऐसा ही है
जैसे सिफ़रों की क़तार बाक़ी हर जाए बिन इकाई ।

जैसे ध्रुवतारा बेबस हो, स्याही सागर में घुल जाए
जैसे बरसों बाद मिली चिट्ठी भी बिना पढ़े धुल जाए,
तेरे बिन मेरे होने का मतलब कुछ-कुछ ऐसा ही है
जैसे लावारिस बच्चे की आधी रात नींद खुल जाए ।

जैसे निर्णय कर लेने पर मन में एक द्विधा रह जाए
जैसे बचपन की क़िताब में कोई फूल मुँदा रह जाए,
मेरे मन पर तेरी यादें अब भी कुछ ऐसे अँकित हैं
जैसे खँडहर पर शासक का शासन-काल खुदा रह जाए ।