भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरे लालित विहंग मुझको दुलरा करते पवानारोहण / प्रेम नारायण 'पंकिल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
तेरे लालित विहंग मुझको दुलरा करते पवानारोहण ।
उमड़ता रभस रस-मिलन-घात का दर्दीला निशि-सम्मोहन ।
प्रति उषा-निशा में कुछ कपोल पर छलकी अश्रु-सलिल गगरी।
अभिसार-शून्य प्राणेश्वर-विरहित अंत विहीना विभावरी ।
गलबहियों के आकुल आमंत्रण में नागिन सी डंस जाती।
कुहरिल प्रदोष की विजन तारिका झिलमिल मिलन-गीत गाती।
निर्मोही! अब भी आ विकला बावरिया बरसाने वाली -
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली॥ २७॥