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तेरे शहर से जाने की हर कोशिश नाकाम हुई / सिराज फ़ैसल ख़ान
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तेरे शहर से जाने की हर कोशिश नाकाम हुई
ख़्वाब भी पूरा हुआ नहीँ शब भी यूँ तमाम हुई
मौत से पहले भी शायद कई बार हम मरते हैँ
तब तब जान गई मेरी जब हसरत नीलाम हुई
सदियोँ से इस दुनियाँ ने प्यार को क्या ईनाम दिया
मजनूँ ने पत्थर खाए लैला भी बदनाम हुई
इश्क़, मोहब्बत, नफ़रत, मज़हब, यकजहती की इक कोशिश
इसी मेँ पैदा हुए थे सब इसी मेँ सबकी शाम हुई