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तेरे हमराह यूं चलना नहीं आता मुझको / आरती कुमारी

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तेरे हमराह यूं चलना नहीं आता मुझको
वक्त के साथ बदलना नहीं आता मुझको

मैं वह पत्थर भी नहीं हूँ कि पिघल भी न सकूं
मोम बनकर भी पिघलना नहीं आता मुझको

कीमती शै भी किसी राह में खो जाये अगर
हाथ अफ़सोस में मलना नहीं आता मुझको ।।

तुम मुझे झील सी आँखों से अभी मत देखो
डूब जाऊँ तो निकलना नहीं आता मुझको

आग का मुझ पे असर कुछ नहीं होने वाला
तुम जलाओ भी तो जलना नहीं आता मुझको