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तेरे ही क़दमों में मरना भी अपना जीना भी / कृश्न कुमार 'तूर'

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तेरे ही क़दमों में मरना भी अपना जीना भी
कि तेरा प्यार है दरिया भी और सफ़ीना भी

मेरी नज़र में सभी आदमी बराबर हैं
मेरे लिए जो है काशी वही मदीना भी

तेरी निगाह को इसकी ख़बर नहीं शायद
कि टूट जाता है दिल-सा कोई नगीना भी

बस एक दर्द की मंज़िल है और एक मैं हूँ
कहूँ कि 'तूर'! भला क्या है मेरा जीना भी.